उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप-लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक-2015
राज्यपाल राम नाईक ने आठ माह से लंबित ‘उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप-लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक-2015’ भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेज दिया है। इससे राय सरकार पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही लोकायुक्त नियुक्त कर चुकी है।
सरकार ने विगत वर्ष 27 अगस्त को विधानमंडल से ‘उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप-लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक 2015’ पास कराया था। विधेयक के जरिए लोकायुक्त चयन समिति से हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका खत्म करने के साथ विधानसभा अध्यक्ष, हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत जज को शामिल करने का प्रस्ताव था। ऐसा करने के पीछे सरकार की मंशा अपनी पसंद का लोकायुक्त नियुक्त करना था। रायपाल ने उसी समय विधेयक के औचित्य पर सरकार से पूछताछ की थी लेकिन उस पर हस्ताक्षर नहीं किये। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण में दखल दिया और 29 जनवरी को न्यायमूर्ति संजय मिश्र को लोकायुक्त बना दिया।
राजभवन के प्रवक्ता ने बताया कि राज्यपाल ने विधेयक के परीक्षण में पाया है कि उसमें लोकायुक्त के चयन की प्रक्रिया से हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका समाप्त की गयी है जबकि, लोकपाल के चयन में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका बाहर करना केंद्रीय अधिनियम ‘लोकपाल तथा लोक आयुक्त अधिनियम-2013‘ की धारा-4 की उपधारा (1) का विरोधाभासी प्रतीत होता है। इस दृष्टि से राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश लोक आयुक्त तथा उप-लोक आयुक्त (संशोधन) विधेयक, 2015 राष्ट्रपति को भेजा है। राज्यपाल ने इसकी जानकारी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी दे दी है। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल नगर निगम से संबंधित दो विधेयक गुरुवार को भी राष्ट्रपति को भेज चुके हैं।
राजभवन में अब सिर्फ एक विधेयक लंबित
रायपाल राम नाईक द्वारा पांच दिन में छह विधेयक निस्तारित करने के बाद अब राजभवन में सिर्फ एक विधेयक लंबित रह गया है। लंबित विधेयक में अब उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग (संशोधन) विधेयक, 2015 है। सूत्रों के मुताबिक इस विधेयक को भी रायपाल अगले सप्ताह तक निस्तारित कर देंगे।